ख्वाब 

१:- ख्वाब जाड़े की शाम का
🏕🕊👤

मन्दिर में स्पंदित होकर
बजती हो पूजा की घण्टी
सब्ज़ रंग की चादर ओढ़े
सर्दी की इक शाम हो लेटी

मिट्टी की सड़क हो कच्ची
पीले सरसों के खेत हो सौंधे
नदिया के दोनों पाटों पर
दोनों साहिल लेटे हो औंधे

जोड़ा हो चिड़ियों का और
जोड़ रहें हो पाती पाती
तिनका तिनका बीन रहे हों
दो नन्हे से प्यारे पाखी

ठण्डी धूप हो मद्धम मद्धम
जिसमें मिली हो थोड़ी छाँव
खेतों बीच मड़ैया अपनी
जहाँ से थोड़ी दूर हो गाँव

दूर क्षितिज पर एक बटोही
खेता हो इक छोटी नाँव
बहती जाती चुपके चुपके
नदिया भी नंगे ही पाँव

और...

फूस का हो एक छोटा सा घर
एक बाहर झूला लटका हो
मिटटी का इक चूल्हा भी हो
लटका छप्पर से मटका हो

एक तखत हो पतला सा
बस हम दोनों ही लेटें हों
घर के सारे काम छोड़ कर
इक दूजे को समेटे हों..

बेसुध सी तुम लेटी रहना
और मेरा एक पैर हो तुमपर
खोल तुम्हारी जुल्फ़े लेटूँ
बिखरा लूँ उनको मैं खुदपर

बाहर आम के पत्तों से जब
शीत गिरेगी टपक टपक कर
सो जाना तुम कसके मुझको
सीने पर मेरे ठुड्डी रखकर

देखा है एक ख्वाब ये मैंने
हो जाड़े की ऐसी शाम
पीठ पे तेरे लिखता जाऊँ
अंगुली से तेरा ही नाम

और छोटी अंगुली को थामे
मेरे सपनों में आ जाना
डूब रहा हो सूरज जब
तुम मुझमें ही घुल जाना

घुल जाना तुम मुझमें जैसे
नदिया सागर में घुल जाए
बरस बरस के फिर नदिया बन
ज्यों फिर सागर में मिल जाए

जनम जनम तक ऐसे ही
मुझमें घुलती जाना तुम
देखा है इक शीत का सपना
साँझ ढ़ले आ जाना तुम...
साँझ ढ़ले आ जाना तुम...

देवयशो

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